भोपाल। चीन के साथ तनातनी का वातावरण लम्बे समय से था ही अब तो वहां युद्ध जैसे हालात बनते जा रहे हैं। ऐसे हथियार लेकर सैनिकों को मारा गया है कि सोचकर ही चीन की गिरावट भयावह करने वाली लगती है। लेकिन सलाम हमारे जवानों को है कि वे बिना तैयारी के भी अपने से दोगुना मार आये। यह विषय एक है। लेकिन इस समय देश में दूसरा विषय भी है। जिसके बारे में मंथन, चिन्तन और निर्णय करने का दौर है। चीन सिर पर बैठकर हमारे सैनिकों को मार रहा है लेकिन देश के विपक्षी दल केन्द्र की सरकार पर दबाव बनाकर दबाव बनाने का प्रयास कर रहे हैं। एक विशेष किस्म का मीडिया सवाल उठा रहा है। आलेख लिख कर सरकार से सवाल पूछे जा रहे हैं। ऐसी परम्परा किसी भी अन्य देश में नहीं है। जब देश संकटकाल में होता है तब सभी लोग या पक्ष सरकार के साथ खड़े दिखाई देते हैं। यहां विपक्ष भावनात्मक सवाल उठाकर संकटकाल में शत्रु को मजबूत कर रहे हैं। जिन बातों की शत्रु जानना चाहता है वे सवाल पूछ रहे हैं और आड़ ली जा रही है देश को बताना चाहिए। जिस देश के मतदाताओं ने जिस राजनीतिक दल को विपक्ष का नेता बनाने की हैसियत नहीं दी वह देश का प्रतिनिधित्व करके चीन के लाभ वाले सावाल पूछ रहा है। क्या हम इन्हें देशद्रोही के अलावा किसी अन्य शब्द से इन्हें संबोधित कर सकते हैं?
एक तेजी से बढ़ते समाचार पत्र में आलेख छपा है। लेखक मानसिक रूप से हिन्दू समाज का विरोध करने वाला लेखक है। मोदी सरकार पर सवाल उठाने का आदी है। जब मेवात हिन्दू विहिन कर दिया तब उस पर कोई सवाल या आलेख नहीं लिखा लेकिन जब चीन को हमारे सैनिकों ने मूंह तोड़ जवाब दे दिया तब सवाल उठाये जा रहे हैं। विपक्षी दल की ओर से भी ऐसे ही सवाल उठाये जा रहे हैं। क्यों? याद होगा जार्ज फर्नाडीस का भी रक्षामंत्री के रूप में इन्हीं तत्वों ने बायकाट किया था। क्यों किया था इसकी जानकारी आजतक नहीं आई। ताबूत घोटाले का जिक्र होता था। लेकिन सच यह है कि जार्ज साहब ने भारत की सेना की समस्या को निदान और जल्द डिप्लाई के लिए एक सड़क का निर्माण कराने की योजना शुरू की थी। विपक्ष को यह हजम नहीं हुआ था और विरोध हुआ। वही सड़क आज चीन के गले की हड्डी बनी हुई है। उसके बाद सियाचीन में हवाई पट्टी भी बन गई और गलवान घाटी में सड़क से रसद भी जल्द पहुंच रही है। इसलिए तब चीन का हित संवर्धन के लिए बायकाट हुआ था और सवाल पूछे जा रहे हैं?
सोशल मीडिया पर देश के दुश्मनों की फौज मोदी विरोध के नाम पर सवाल दाग रही है। भारत चीन की सैन्य शक्ति का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं आया होगा लेकिन सामरिक ताकत के आधार पर वह चीन को कड़ा जवाब दे सकता है। परमाणु संपन्न भारत 1962 जैसा भारत नहीं है। इसलिए चीन के होश भी पास्ता हैं। ऐसे में हमारे सैनिकों ने एक के बदले दो का फार्मूला समझा भी दिया है। जब हमारे सैनिक ऐसा करारा जवाब दे सकते हैं तब भारत के जयचंदों जो चीन के लिए भारत में पैरोकारी कर रहे हैं उनको भी वैसा ही सबक सिखाने की जरूरत है। सरकार को छोडिय़े देश की 130 करोड़ जनता को खड़े होना होगा।