मेरा नियमित कालम " लीक से हटकर
( शिखर वाणी और संवाद इंडिया डॉट कॉम के लिए )
भोपाल। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पहला कार्यकाल विदेशों में बीता। यह आरोप विपक्ष का था। अब जब दूसरा कार्यकाल भारत में बीत रहा है तब विपक्ष को हजम नहीं हो रहा है। विदेशों में जाकर भारत को भारत वर्ष बनाने का काम किया और अब देश का ढर्रा बदलने का काम शुरू हुआ है तो विपक्ष पूरे तौर पर नकारात्मक हो गया। क्या सरकार के प्रति नकारात्मकता को देश के प्रति नकारात्मकता के करीब जाने देना चाहिए? यही सवाल विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस, वामदल और ममता से बनता है। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने देश की दिशा की नींव रखी। इंदिरा जी ने उसे आत्म निर्भरता तक पहुंचाया। अटल जी ने सड़कों का जाल फैलाकर उसे दृढता प्रदान की। मनमोहन कार्यकाल में सोनिया गांधी की देख-रेख में देश आर्थिक रूप से खोखला हो गया था। अर्थव्यवस्था कागजी और जीडीपी गुब्बारा हो गई थी। विकास जहां से दिख सकता था वे आसमान में टंग गये थे, धरातल से उनका लिंक टूट गया था। एनपीए आसमान को छूने लग गया था वह प्रबंधन से दबा तभी आल इज वैल दिख रहा था। भ्रष्टाचार और चोरी की मानसिकता ने सरकारी संस्थानों को उन दिनों ही जमीन के नीचे पहुंचाया था। परदा मोदी ने उठाया तो हाथ में झटका लगा। जिसे आज कमजोर अर्थव्यवस्था कह कर नकारात्मकता फैलाई जा रही है।
यह अर्थव्यवस्था का नीचला दौर है और इससे नीचे जाने की नहीं बल्कि ऊपर आने और स्थायित्व के साथ आगे बढऩे की जमीन तैयार हो गई है। 1947 में हम बंटकर दो देश हुये थे, बाद में इंदिरा जी की मेहनत से तीन। तीनों देशों को देखिये। भारत-पाक-बंगलादेश। कौन किस गति से विकास कर रहा है? पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था डूब रही है। क्यों? वहां आर्थिक परिवर्तन नहीं हो रहे और देशभक्ति भारत के विरोध में दिखाई दे रही है। इसलिए लोगों का जीवन स्तर नहीं बढ़ रहा, केवल भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। बंगला देश ने अलग होने के बाद तेजी से विकास किया है वहां देशभक्ति अपने स्तर को ऊंचा उठाने के लिए है लोग काम करते हैं। ढ़ाका को मुम्बई बनाने का सपना है। ऐसा पाक कोई शहर नहीं है। भारत और पाकिस्तान में समान स्थिति बन रही थी। मनमोहन के कार्यकाल में भ्रष्टाचार ऊपर तक आकर नंगी आंखों से दिखाई देने लग गया था। लेकिन चौतरफा गिरावट आ गई थी। मोदी राज में देश ने करवट ली है। इसलिए चादर उथली हुई दिखाई दे रही है लेकिन ऐसी हालत आगे रहने वाली नहीं है।
देश में अस्थिरता लाने का दौर है। कौन हैं इसके पीछे? जिनकी सत्ता चली गई वो? जिनकी सुविधाएं चली गईं वो? जिनकी काली कमाई चली गई वो? शासकीय सेवाओं में जिनकी हरामखोरी पर रोक लग गई वो? जिनकी कर्ज डकारने की छूट छीन ली गई वो? जिनकी मजहबी दुकान बंद हो रही है वो? जितनी नकारात्मकता फैलाई जा रही है क्या सच में देश इतना ही नकारात्मक हो गया? तर्क हो सकते हैं लेकिन तर्कों की तुलना धरातल से करने का मौका देने से पहले ही हिंसा हो जाती है। देश में 49 केन्द्रीय विश्वविद्यालय हैं जिनमें दो वाम प्रभाव वाले और दो मुस्लिम प्रभाव वालों में ही हिंसक आन्दोलन क्यों हो रहे हैं? यहीं से शुरू होती है नकारात्मकता और हिंसा दौर।