'एमसीयू' विचारधारा से शुरू जातिवाद पर 'खत्म,


माखनलाल पत्रकारिता वि.वि. (एमसीयू)


भोपाल। विचारधारा के बिना व्यक्ति पशु के समान है। अभी एक वरिष्ठ पत्रकार की टिप्पणी पढ़ रहा था। माखनलाल पत्रकारिता वि.वि. एमसीयू के कामकाज पर आरोप लगता रहा है कि वह विचारधारा का गढ़ बनती रही है। जब मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा ने इसका गठन किया तब वरिष्ठ पत्रकार राधेश्याम शर्मा को इसका महानिदेशक बनाया था। वे देश के माने हुये पत्रकार थे साथ में राष्ट्रवादी विचारधारा के समर्थक थे। लेकिन उन्होंने विवि को संघ का गढ़ नहीं बनने दिया बल्कि उसका ढ़ांचा ऐसा तैयार किया जिसमें पत्रकार बनने के गुण विकसित हों। जब पटवा सरकार गई और दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने तो राधेश्याम जी ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। दिग्विजय सिंह ने बड़े मन से कहा था कि मैंने तो आपको कोई संदेश नहीं दिया था महाराज आप कार्यकाल पूरा कर सकते हैं। शर्मा जी ने कहा कि कोई मुझ पर टिप्पणी करे उससे बेहतर है कि मैं आज ही पद छोड़ दूं। इसके बाद प्रशासनिक अधिकारियों ने कांग्रेस के राज में कुलपति का पद संभाला। एससी बेहार के कार्यकाल में कांग्रेस की विचारधारा नहीं बल्कि नक्सली समर्थक विचारधारा के पनपने के आरोप लगे थे। वामपंथी सोच को बढ़ावा दिया ही गया। इसके बाद अच्युतानंद मिश्र जैसा बड़ा पत्रकार कुलपति बना और विवि ने खूब उन्नति की। कोई आरोप नहीं लगा।
उनके बाद बृजकिशोर कुठियाला कुलपति बने। दो बार का कार्यकाल रहा। उनके समय में विवि को बड़ा नाम मिला। विस्तार हुआ। वामपंथी विचारधारा का बोलबाला समाप्त हुआ। यहीं से आरोप लगा कि संघ की विचारधारा ने एमसीयू में प्रवेश किया। यह हो सकता है कि कुठियाला ने अपने कार्यक्रमों में विशेष विचार के विद्वानों को बुलाया हो। लेकिन ऐसा करना कोई नया और पहला नहीं था। दिग्विजय सरकार का संस्कृति विभाग हिन्दू विरोधी विचारकों को ही बुलाता था और वे यहां आकर वही करते थे जो अपेक्षा उनसे रहती थी। एकता समिति का अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार लज्जाशंकर हरदेनिया को बनाया गया तो वामपंथी कार्डधारी हैं। एमसीयू हो या अन्य संस्थायें यहां विचारधारा का द्वंद्व हुआ है। होगा भी। क्योंकि जिस भी पार्टी की सरकार बनेगी वह अपनी ही विचारधारा का प्रचार करेगी। आज कांग्रेस यदि दीपक तिवारी के माध्यम से कांग्रेस की विचारधारा का प्रचार करवा रही है या इस विचारधारा के समर्थकों को उपकृत कर रही है तो इसकी आलोचना तभी की जा सकती है जब भाजपा ने ऐसा नहीं किया हो। लेकिन जातिवादी बातें पहले भी नहीं की गई और न ही कांग्रेस की सोच होगी। यह दो दलित विचारकों की अपनी मंशा ही होगी।
पत्रकारों में जातिवाद का जहर नहीं होता। तब भी नहीं जब पत्रकारिता में अधिकांश उच्च जातियों के व्यक्ति ही हैं। लेकिन माखनलाल में बुनियादी शिक्षा देने वाले शिक्षक ही जब इस प्रकार की मानसिकता के होंगे तब तो आलोचना होगी ही। एक बड़ा विचित्र पहलु है। दलित विद्वान अपने समाज का उत्थान करने के लिए प्रयोग कम करते हैं अन्य वर्गों की कमियां बताकर विवाद पैदा करने में अधिक ध्यान देते हैं। यही एमसीयू में हो रहा है। कथित दमन का बदला दमन नहीं हो सकता। इसलिए दलित मानसिकता से निकल शिक्षक मानसिकता में आ जायें यही छात्रों और संस्थान के हित में होगा।